संदीप सक्सेना , पिछले 16 साल से म .प्र. के होशंगाबाद में एक छोटे से वनग्राम में रहे हैं। उससे पहले 1992-96 मे iit कानपुर व iim लखनऊ से शिक्षा ली। मा. स्व. अटल विहारी बाजपेयी जी ने शैक्षणिक उपलब्धियों के लिये पुरुस्कृत भी किया।
10 साल देश विदेश में काम किया जिसमें indian oil, infosys, Franklin templeton शामिल हैं। 2005 में Franklin templeton ने इनको Asia business का V.P.बनाया।
अर्थशास्त्र व वैश्विक व्यापार व संसाधनों की समझ ऐसी बनी कि 2007 में एक दिन सब छोढ़ एक गांव ही कर्मभूमि बना ली जो होशंगाबाद जिले में है।
एक हाशिये पर रह रहे गरीब की तरह संघर्ष करने का अनुभव लिया। फिर वहीं से सोच शुरू की कि कैसे एक हाशिये पर रह रहा व्यक्ति या समाज, बिना शोषण किये, वापस संपन्न हो सकता है। यह अनुभव भी एक अच्छी व गहरी किताब "the diary of a snake charmer" में सावर्जनिक किया।
अपने खाद्यवन के साथ ही उ . प्र. , हिमाचल व उत्तरांचल के सुदूर व मौलिक जीवन वाले गावों मे भी प्रयोगिक कार्य करते रहे । उनके कार्य का उद्देश्य रहा कि प्रकृति को समझकर व गांव में खाद्यवन उगाकर, नैसर्गिक उत्पाद व ज्ञान के माध्यम से ही समपन्नता लायी जा सके। मूल दर्शन् व प्रकृति व सामाजिक समस्याओं से भी अच्छा अनुभव होता रहा। पिछले 15 साल से अपना कार्य व संघर्ष भी साझा करता रहे।
कहते हैं यहां तक चल पाने के पीछे बहुत लोगों की भावना है। हिमालय के सुदूर गांवों से लेकर अरावली के नीचे तक; रेगिस्तान, सतपुडा, विंध्य से लेकर छत्तीसगढ के जंगलों तक; गंगा जी , दोआब, नर्मदा जी के क्षेत्र; पश्चीमी घाट, विदर्भ, इत्यादि अनेक क्षेत्रों में प्रकृति व संस्कृति सहेजने के अथक प्रयास का अनुभव लगा है। अरण्यानी, अवनी, सहजीवन, मालसेन हिमालय एकात्म, अनेकों जैविक विक्रेता, आदि अनेकों संस्थानों ने अपने स्तर पर हमारी समझ बनायी।
संदीप के अनुसार जब सत्यपूर्वक हमारी संपदा और परंपरागत ज्ञान का उपयोग होगा, तब ही प्राकृतिक व परंपरागत उत्पाद व सेवाओं को सही मूल्य मिलेगा व उनकी संपत्ति का बोध देगा जो वर्तमान व्यवसायिक ढांचे में संभव नहीं है।
वैसे तो सरल सहज, मायाजाल से बचकर आनंद लेने को ही असली जीवन शैली मानते हैं। परन्तु छह महीने पहले ऐसी घटना हुई जिसने इनकी कमर कस दी।
एक बढ़े संपन्न व्यक्ति से मिलने गये आग्रह करने को कि किसी योजना पर वह जो करने जा रहे है, वह न करें और प्रकृति के प्रति दूरगामी सोच रखें। सुनने की जगह उन्होंने दो टूक सुना दी। बोले, अगर पैसा आज नहीं हाथ में लेंगे तो चलायेंगे कैसे? और यदि तुमको इतना ही भरोसा है पीपल, बरगद, नदी के अमूल्य होने पर तो उसका कुछ अंश तो दिखाकर बताओ।
बात ऐसी चुभी कि तुरंत अपना अनुभव जोढ़ा। लगा कि जब संपन्न व्यक्ति ही नहीं सुनेंगे तो फिर कुछ नहीं बचेगा। भगवान को स्मरण किया और फिर Ganga Project की योजना बनाई। अपने वृहद नेटवर्क व ज्ञान को पिरोया।
अपने मित्रों से गहन चर्चा की कि प्राकृतिक, पारदर्शिता, परंपरागत, अंत्योदय, और स्थानीय को हम पैसे की होड़ में खोते जा रहे हैं। लेन देन को इनके शोषण की जगह उत्थान का माध्यम बनाना होगा।
उसको कैसे पारंपरिक ज्ञान, सामूहिक उद्यम, तकनीकी, ब्लाकचेन, ई-कामर्स, सोशल मीडिया आदि को जोढ़कर ताकत दी जाये।
reactjs, nodejs, react-native और अपने aligntogether live platform को इस्तेमाल कर और algorand पर अपने टोकन GEBT से जोढ़कर , गंगा प्रोजेक्ट की संरचना गंगा के अनुरूप ही बनायी गयी - यानि पूर्ण पारदर्शिता, प्रकृति से समन्वय, सामूहिक अर्थव्यवस्था के सभी पक्ष यहां तक कि एक प्रतिनिधि टोकन, परंपरागत ज्ञान व वैद्य, व सबसे कमजोर वर्गों को शामिल करना।
आधुनिकतम Ecommerce तकनीक के साथ , यह Blockchain की पारदर्शिता भी ला रहा है। इसलिए इससे अनुबंधित blockchain token, ब्रिटेन के Dex-trade पर एक अरब डॉलर के मूल्यांकन से शुरूआत के साथ ही यह एल्गोरेंड ब्लाकचेन का सबसे मूल्यवान टोकन बन गया है।
संदीप का मानना है कि यह तो सिर्फ शुरुआत है। दुनिया को ऐसे माॅडलों की सख्त जरूरत आ गयी है जो तकनीक और प्रकृति का सामंजस्य बिठा सकें। समझने की बात यह है कि पूरे खरीद बेच के संवाद को लेकर एक नया प्रयोग है। अब विश्व भी इसका मूल्य समझ रहा है।